Article 1 - Swan and Crow


ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ श्री साईं राम

ॐ श्री साईं वसंता साईंसाया नमः

ज्ञान बोधक लेख – १

हंस और कौआ




कुछ समय पहिले स्वामी ने विभूति निकालते हुए अपने एक हाथ की तस्वीर दी| जिसके बारे में मैंने पहेले भी लिखा है| इसके कुछ समय पश्चात उन्होंने एक दूसरी तस्वीर दी| उस समय अनेकों हाथ विभूति लेने के लिया उनकी तरफ बढ़े हुए थे| अनेकों हाथों के मध्य विभूति सिर्फ एक हाथ में गिर रही थी| वहां लाल स्याही में लिखा था :

जिस विभूति को मैं उत्तपन करता हूँ वह एक शक्तिशाली दिव्यता को दर्शाता है| संसार क्षणभंगुर और परिवर्तनशील है, सब जल कर भस्म हो जाता है, तब यही विभूति ही शेष रहती है|”


तुम राख हो और अंत में उसी में वापस जाना है| जो विभूति स्वामी उत्पन्न कर लोगों को देते हैं, वह दिव्य होती है| यह संपूर्ण सृष्टी अस्थाई, क्षणिक और हमेशा परिवर्तनशील है| मनुष्य पैदा होता है, बढ़ता है, जीवन व्यतीत करता है और अंत में मृत्यु को प्राप्त होता है| मृत्यु के बाद वह राख बन जाता है| कितने दुखों, कठिनाइयों, ख़ुशियों और अनेकों मन: स्थितियों को उसे पार करना पड़ता है| सब निरंतर बदलता रहता है| अंततः राख बनने के लिए मनुष्य को इन सभी स्थितियों से गोज़रना पड़ता है|



यदि किसी व्यक्ति को वास्तव में यह लिखना पड़े कि सुबह से लेकर रात तक कितने विचार उसके मन में आए, तो यह कितना अधिक होगा| यही अनेकानेक विचार उसका स्वाभाव और गहन संस्कार बन जाते हैं| यही संस्कार बार बार उसके जन्म और मृत्यु का कारण होते हैं| इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है, सब कुछ परिवर्तनशील है| जिस तरह मनुष्य जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता है, उसी तरह पौधा वृक्ष बनता है और अंत में मर जाता है| जानवरों और पक्षियों के साथ भी ऐसा ही है| इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जो नित्य हो| फिर भी मनुष्य अपना सारा समय अस्थाई और अनित्य वस्तुओं को एकत्रित करने में व्यतीत कर देता है| पति, पत्नी, रिश्तेदार आदि, किन्तु एक दिन सब राख बन जाते हैं| इन सब के लिए इतना कष्ट क्यों उठाना? सभी जो भगवान के पास से आए हैं, एक बार पुनः उन्हें प्राप्त करें| तब तक मनुष्य बार बार जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता रहेगा| इस संसार में हर व्यक्ति अद्वितीय है, दो व्यक्ति एक जैसे नहीं हैं| जुडवा लोगों के बारे में भी यही बात लागू होती है| सभी अलग अलग हैं| अत: मनुष्य को अपने स्वभाव के अनुसार रहना चाहिए| किन्तु वह दुसरे लोगों की नकल करते हुए एक मिथ्यापूर्ण तरीके से जीवन व्यतीत करता है| किंडरगार्टन कक्षा में बच्चों को पहला पाठ यही पढ़ाया जाता है कि दूसरों की नकल मत करो|



दूसरों की नकल करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? यह इस लिए कि सभी अपनी तुलना दूसरों से करते हैं| उदाहरण के लिए एक व्यक्ति कार खरीदता है, उसका पडोसी सोचता है कि वह भी कार खरीदेगा| एक व्यक्ति का बच्चा कान्वेंट स्कूल में पढ़ता है, दूसरा व्यक्ति भी सोचता है कि मैं भी अपने बच्चे को उसी स्कूल में भेजूंगा| एक स्त्री कुछ आभूषण खरीदती है, दूसरी स्त्री कहती है, “ इस महीने मैं भी नया आभूषण खरीदूंगी| इस तरह जब कोई अपनी तुलना दूसरों से करता है तो वह उनकी नकल करने में मजबूर हो जाता है| आध्यात्मिक जीवन में भी कुछ ऐसा ही होता है| एक व्यक्ति प्रतिदिन किसी आश्रम में जाता है, दूसरा सोचता है, “ मैं भी जाऊंगा” | किन्तु यह सभी व्यक्ति में वास्तविक बदलाव नहीं लाएंगी| हमें दूसरों से अच्छी आदतें सीख कर अपने को बदलना होगा| हमने सिर्फ अपने को रूपांतरित करने के लिए जन्म लिया है| सभी को अपनी व्यक्तिगत यात्रा के द्वारा ईश्वर को प्राप्त करना है| इस यात्रा में हम किसी को भी अपने साथ नहीं ले जा सकते| सभी अपने को स्वयं सुधारें| यही कुछ स्वामी ने हमें “ हंस और कौआ” की कहानी के द्वारा समझाया है| हंस की चाल बहुत सुन्दर होती है| अत: कवि एक आकर्षक स्त्री कि चाल कि तुलना हंस कि चाल से करते हैं|

एक बार एक कौआ ने हंस को चलते हुए देखा और उसने भी हंस की तरह चलना चाहा| कौआ ने हंस की चाल सीखने के लिए बड़ा प्रयत्न किया किन्तु

वह अपने प्रयत्न में असफल रहा| अंततोग्त्वा कौआ ने अपना प्रयत्न छोड़ दिया और अपने ही चाल में वापस आ गया| किन्तु काफी प्रयत्न करने के उपरांत भी वह यह याद नहीं कर सका कि कौआ कैसे चले| यानि वह कौआ अपनी चाल भूल गया|

इसी तरह यदि तुम दूसरों की नकल करोगे तो तुम स्वयं अपना स्वभाव भूल जाओगे| इसी बात की चेतावनी स्वामी सभी को बड़े ज़ोरदार तरीके से देते हैं| अत: दूसरों की नकल मत करो| अपने स्वाभाव के द्वारा सब कुछ प्राप्त करने का प्रयत्न करो| दूसरों की नकल सिर्फ दिखाने के लिए की जाती है| भागवान सबकी भावनाओं को जानते हैं, अत: पाखंडी मत बनो| एक ऊदाहरण –

दो जैन साध्वी यहाँ आईं और पुछा कि क्या वे आश्रम में रह सकती हैं? हमने सहमती दे दी| वे एक रात रुकीं और प्रत: होते ही प्रस्थान कर गईं| अपनी वापसी यात्रा में आज वे पुनः आश्रम में आईं| दोनों स्त्रियाँ जहाँ भी जाती थीं, केवल पदयात्रा ही करती थीं| दो व्यक्ति उनके सामान के साथ एक वैन में आए| उन स्त्रियों ने यह नहीं पुछा, “यह किसका आश्रम है? यहाँ कौन रहता है?” इन सब बातों पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया|

वे जहाँ भी जाती हैं, उनके धर्म सम्प्रदाय के लोग उनके रहने के लिए स्थान की व्यवस्था करते हैं| दोनों ने विश्राम किया और अपनी यात्रा जारी रखी| यहाँ की किसी बात पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया| वे अपने मार्ग पर हैं| हमें भी इसी तरह होना चहिए| कुछ भी हमारे रास्ते की  बाधा नहीं होनी चाहिए| दूसरे क्या कर हैं, हमें उसकी तरफ नहीं देखना चाहिए|


१८ अप्रैल २०१३, सायंकालीन ध्यान

वसंता : स्वामी, लोग ऐसे क्यों हैं, दूसरों को देखते हैं और उनकी नकल उतारते हैं? क्या मैं इस बारे में लिखूं?

स्वामी : इसे ज्ञान बोधक लेख की तरह लिखो|

वसंता : जब मैं माली को देखती हूँ, मेरा हृदय पिघलता है, बेचारे गरीब लोग, स्वामी कृपया उन्हें बदलिए|

स्वामी : जब तुम उसे आते हुए देखती हो तब आंसू निकलते हैं; जब तुम उसके आने के बारे में सोचती हो तब दया उमड़ती है| यह दोनों बातें अवश्य ही उसमें बदलाव लाएंगी| एक माँ बीमार बच्चे को अथवा नासमझ बच्चे को अपनी गोद में लेती है और उसकी देखभाल करती है| वह दुसरे समझदार बच्चों के बारे में कोई चिंता नहीं करती|

वसंता : स्वामी, समझदार लोगों को दूसरों की नकल करते देखकर मुझे बहुत क्रोध आता है|

स्वामी : यह एक माँ का स्वाभाव है|

वसंता : स्वामी, मैं एक नासमझ बच्ची हूँ, आप मुझे हमेशा अपनी गोद में रखिए|

स्वामी : तुम हमेंशा ही मेरी गोद में या हृदय में हो|

ध्यान समाप्त


अब ज़रा इस बारे में देखें| माली प्रतिदिन सवेरे ६ बजे गर्भकोटम में आता है| जब मैं आती हूँ, वह वहीँ पर होता है| आरती के पश्चात वह अपने काम पर चला जाता है| पहले वह शराब और धूम्रपान का आदी था| उसका कहना है कि यहाँ आने के बाद उसने ये बुरी आदतें छोड़ दीं| मैं बहुत खुश होती हूँ जब अशिक्षित और अज्ञानी ग्रामीण लोग यहाँ आकर रूपांतरित होते हैं| उनमें बदलाव आता है| अत: मैं उनके लिए स्वामी से प्रार्थना करती हूँ| उन्हें देखते ही मेरी आखें भर जाती हैं| परमात्मा इन जेसे लोगों का उद्धार करने आए हैं| ये भोलेभाले ग्रामीण लोग छलकपट से रहित हैं और अपनी गलतियों को महसूस करते हैं| इसलिए मैं उनके लिए प्रार्थना करती हूँ| एक अस्वस्थ बच्चे को जिसे कुछ भी पता नहीं है, माँ हमेंशा` अपनी गोद में रखती है और उसकी देखभाल करती है| वह अन्य बड़े और समझदार बच्चों के बारे में कोई चिंता नहीं करती| स्वामी मेरी मन: स्थिति की तुलना एक माँ से करते हैं| जब समझदार और ज्ञानी लोग गलतियाँ करते हैं तो मुझे क्रोध आता है| जब साधारण लोग अपने में बदलाव लाते हैं तब उन्हें देखकर मैं उनके लिए और अधिक प्रार्थना करना चाहती हूँ| स्वामी ने इस बारे में एक उदाहरण दिया| यदि हम लहसुन के पौधे पर प्रतिदिन गुलाबजल डालें तो भी उसका स्वभाव नहीं बदलेगा, लहसुन की खुशबू उसमें हमेशा रहेगी| यही कुछ स्वामी ने कहा| अत: हम कुछ भी करें, पुराने संस्कार हमें कभी नहीं छोड़ेगें| यहाँ तक कि तुम लहसुन को गुलाबजल में भिगोकर बादाम के हलवे से भी ढक दो, तो भी उसकी महक नहीं जाएगी| इसी तरह यदि तुम दूसरों को देखकर उनकी नकल उतारोगे तो तुम्हारा पतन ही होगा| उससे कोई छुटकारा नहीं मिलेगा| संस्कार कभी भी नहीं जाएँगे| तुम सिर्फ अपने को छल रहे हो| यह सब कुछ आध्यात्मिकता में नहीं होता| एक व्यक्ति जप करता है, दूसरा ध्यान में लगा है, अन्य कोई सेवा की गतिविधियों में लगा है| अत: उन्हें देखकर नकल मत करो| भागवान को अपने स्वाभाव द्वारा प्राप्त करना होगा| मैंने पहले एक गीत लिखा था –

यहाँ कितने तरह के लोग हैं
सभी ईश्वरीय कृपा के प्रमाण हैं
सभी भिन्न भिन्न स्वभावों के हैं
कुछ के अंदर पशुता छिपी है
दूसरों के अंदर देवत्व गुण छिपे हैं
यह सब भगवान की लीला है|

जिस व्यक्ति से तुम मिलते हो उसकी अच्छी आदतें सीखो| उसके अच्छे गुणों को आत्मसात् करो| उसके कार्यों को नहीं उसके गुणों की नकल करो| महानतम अवतार यहाँ उन गरीब लोगों के लिए ही आए हैं जो कुछ भी नहीं जानते| वे अनजाने में गलत रस्ते में भटक जाते हैं| स्वामी और मैं उनको अवश्य बदलेंगे| मेरे आंसू और प्रार्थना केवल उन्हीं के लिए है| अन्य सभी के लिए केवल ज्ञान है जो मैं लिखती हूँ| पढ़ो, अनुभव करो और अपने को रूपांतरित करो| स्वामी ने कहा है कि यदि अनभिग्य लोग गलती करें और उन्हें कहा जाता है तो वह बदल भी जाते हैं| किन्तु ज्ञानी लोग अपनी गलतियों को महसूस ही नहीं करते और केवल उन्हें छिपाने का प्रयास करते हैं|

जय साईं राम

वसंता साई


1 comment:

  1. SAIRAM, It will help millions to tranform.Thanks Swami and Amma to start this new Hindi Blog.

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